Mahakumbh मकर संक्रांति और महाकुंभ का पहला अमृत स्नान आज, यहां जानें महापर्व के बारे में सबकुछ
Mahakumbh मकर संक्रांति और महाकुंभ का पहला अमृत स्नान आज, यहां जानें महापर्व के बारे में सबकुछ

सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने का महापर्व मकर संक्रांति यानी मंगलवार को मनाया जाएगा। लोग पुण्यकाल में सुबह से ही पवित्र नदियों और अपने घर पर स्नान, सूर्य पूजा, जप, अनुष्ठान, दान दक्षिणा करेंगे। इस बार मकर संक्रांति पर विष्कुंभ योग और पुनर्वसु नक्षत्र का संयोग बन रहा है। जोक बहुत अच्छा माना जा रहा है। मकर संक्रांति के साथ ही खरमास भी समाप्त हो जाएगा और मांगलिक कार्य शुरू हो जाएंगे। महाकुंभ के शुभारंभ से इस बार सनातनियों में मकर संक्रांति पर्व का महत्व बढ़ गया है।
महाकुंभ का पहला अमृत स्नान आज-
महाकुंभ का पहला अमृत (शाही) स्नान आज है। मकर संक्रांति के अवसर पर सभी 13 देवता अपने नागा संतों के साथ संगम तट पर स्नान करेंगे।
अगली दो अमृत स्नान
- 29 जनवरी मौनी बॅनबी
- 03 फरवरी वसंत पंचमी
ज्योतिषाचार्य एसएस नागपाल बताते हैं कि इस वर्ष हिंदू पंचांग के अनुसार 14 जनवरी को सूर्य देव, मकर राशि में सुबह 8.55 बजे प्रवेश करेंगे। वहीं विष्कुंभ योग और पुनर्वसु नक्षत्र का भी संयोग बन रहा है। मकर राशि में सूर्य के प्रवेश के साथ ही पुण्यकाल में स्नान व दान के बाद तिल खाना शुभ रहेगा। पुण्यकाल प्रातः 8.55 से सायं 5.43 तक रहेगा। पुण्यकाल में स्नान के बाद घर, जप, अनुष्ठान करना और ब्राह्मणों और गरीबों को तिल, गुड़, आटा, शिशु सामग्री, गर्म कपड़े, कंबल, लकड़ी आदि दान करने से घर में सुख-समृद्धि आती है। यदि कुंडली में सूर्य शनि का दोष है तो मकर संक्रांति पर्व पर सूर्य पूजा, काले तिल दान करने से सूर्य शनि के दोष दूर होते हैं।
खरमास समाप्त हो जाएगा-
मकर संक्रांति के साथ ही खरमास समाप्त हो जाएगा। इसके साथ ही शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह, लग्न, मुंडन, गृह प्रवेश आदि लोग कर सकते हैं। 16 जनवरी से विवाह के लिए शुभ उत्सव भी मनाया गया।
आज ही दिन गंगा जी सागर में मिली थी
ज्योतिषाचार्य एसएस नागपाल ज्योतिषाचार्य मकर संक्रांति के साथ अनेक पौराणिक तथ्य जुड़े हुए हैं। आज के ही दिन मां गंगा जी भगीरथ के पीछे के देवता मुनि के आश्रम से सागर में जा मिली थीं। आज के दिन गंगा स्नान और तीर्थ स्थानों पर स्नान दान का विशेष महत्व है। महाभारत की कथा के अनुसार भीष्म पितामह ने अपना देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का दिन ही चुना था।
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